तुम होगे वहां...
- Shikhar Sumeru
- Apr 18, 2021
- 1 min read
Updated: Apr 26, 2021
राह चलते यूँ ही उस दिन,
जब साथ तुम्हें ले आया था,
दरअसल दिखा राह मुझको
तुमने ही अपनाया था,
अकेलेपन की टीस मिटाकर
हर सुख-दुःख में साथ निभाकर,
छोड़े थे तुमने अपने निशाँ,
ज़िंदगी के हर मुकाम पर,
तुम थे वहाँ, तुम थे वहाँ...
अपनापन रिश्तों में जब
क़ैद हुआ किश्तों में जब,
खुदगर्ज़ी के सागर में तब,
डूब रहा था मेरा जग,
मतलब से कोसों तब दूर,
प्यार लिए दिल में भरपूर
सबक़ इंसानियत का तुम
पढ़ा गए इंसानों को
फिर किस तरह तुम बेज़ुबां
सबने साथ भले छोड़ा
तुम थे वहाँ, तुम थे वहाँ...
क्यों चले गए छोड़ फिर तुम
हुआ दशक कहाँ वो ग़ुम
शतक जियोगे, नहीं थी आस
पर यूँ जाओगे, नहीं था भास
छिले-कटे सब्ज़ी के गाजर
कौन छिपा के खाएगा अब
दीवाली की आतिशी रात
कौन चिपटने आएगा अब
कटेगी कैसे जीवन राह
दिल बार-बार होता हैरां
कचोटता बस एक सवाल,
तुम होगे वहां? तुम होगे वहां?
कभी किसी रोज़ जब मेरा
बुलावा आख़िरी आएगा
संसारी बंधन, मोह जब
यहीं धरा रह जायेगा
देख तुम्हारा निश्छल स्नहे
दिल को है हो चला यकीं
मुलाक़ात फिर होगी तुमसे
अम्बर हो, या हो ज़मीं
अब मन में है बस ये अरमां
कि तुम होगे वहां, तुम होगे वहां....
This piece is dedicated to the friend of a friend whose favorite pastime -- quite contrary to the rest of her clan -- was devouring carrots and peas. One often wonders whether she was a rabbit in one of her past existences. May she rest in peace in a garden full of root vegetables, especially the orange kind!

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